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विकास और मूलभूत सुविधाओं से कोसों दूर चिकनी कोना गांव

विकास और मूलभूत सुविधाओं से कोसों दूर है चिकनी कोना गांव

महुआडांड़,(लातेहार):महुआडांड़ प्रखंड अंतर्गत ओरसा पंचायत के चिकनी कोना गांव लंबे समय से विभागीय उदासीनता का दंश झेल रहा है। एक और जहां पहले से ही यहां के लोगों में विकास नहीं हुआ है। लगभग 60 से 65 घरों का यह गांव अभी भी मूलभूत सुविधाओं से कोसों दूर है। एक ओर जहां प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत हर घर को छत दिया जा रहा है, वही इस गांव में इक्के दुक्के घरों को छोड़ दिया जाए तो सभी घर मिट्टी व खपड़ेल ही मिलेंगे। गांव की एक 70 वर्षीय वृद्धा बत्रसिया तिर्की ने बताया की मेरे जैसे और भी बुजुर्ग है, जिन्हें वृद्धा पेंशन नहीं मिलता है, कुछ दिव्यांग भी है उन्हें भी पेंशन नहीं मिलता है। इसके लिए कई बार आवेदन हम लोगों के द्वारा दिया गया है। इस गांव को मुख्य सड़क से जोड़ने के लिए भी कोई सड़क का निर्माण नहीं हुआ है। गांव में कुछ ही लोगों को वृद्धा पेंशन का लाभ मिल पा रहा है।

दूषित पानी पीने को मजबूर है स्कूली बच्चे

यहां के स्थानीय बच्चों के लिए सिर्फ एक विद्यालय है वहां भी बच्चे अपनी मजबूरी और सरकार की उदासीनता का दंश झेल रहे हैं। गांव में सिर्फ एक प्राथमिक विद्यालय है, जहां 35 बच्चों को पढ़ाने प्रतिदिन 3 शिक्षक आते हैं। 2003 में इस विद्यालय की स्थापना हुई थी लेकिन तब से अभी तक 20 वर्षों में इस विद्यालय में पानी की व्यवस्था नहीं की गई । बच्चे अपने घरों से बोतल में पानी भर कर पढ़ाई करने आते हैं, और जब उनके बोतल का पानी खत्म हो जाता है तो वे नदी का दूषित जल पीने पर मजबूर हो जाते हैं। विद्यालय के बगल में ही एक छोटा नाला है, जिसके पास चुआरी खोदकर वहां का पानी बच्चे पीते भी है और वही अपना बर्तन भी साफ करते हैं। विद्यालय का खाना भी इसी दूषित जल से बनाया जाता है और गंदे बर्तन भी वही धोए जाते हैं। विद्यालय में बच्चों की कम संख्या को देखकर शिक्षकों से जब इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया की यहां बच्चे अक्सर बीमारी के कारण विद्यालय नहीं आ पाते हैं, निरीक्षण के दौरान भी एक बच्चे के पेट में दर्द होने के कारण उसे छुट्टी देकर घर भेजा गया। इसके संबंध में विद्यालय के शिक्षकों ने बताया कि गर्मी के दिनों में यह वाली भी सूख जाता है जिसके बाद बच्चे गर्मी की चिलचिलाती धूप में 2 से 3 किलोमीटर दूर अपने घर जाकर पानी लाते हैं, जिसमें उनके पढ़ाई के दौरान घंटों उनका समय बर्बाद होता हैं। इस संबंध में कई बार विभाग को कहा गया है लेकिन अभी तक इस संबंध में सुधार की कोई पहल नहीं की गई है।

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